Wednesday 15 March 2017

सबकी निकल गयी बोली इस वार चली भगवा होली..


लगातार नेताओं के भाषण को सुन कर हम बोर होने हि लगे थे की एग्जिट पोल ने तो टीवी स्टूडियो में जैसे फिर से आग भर दी । एंकर फिरसे जोर जोर से चिलाने लगे और नेता गरज कर मनो प्राइम टाइम को हंगामा शो में बदलते रहे । सायद आप को भी यही हंगामा पसंद है , पर उ.प  को ये साथ नहीं पसंद है ये ओपिनियन पोल भी बोलने लगे थे ।  

                     इनपर विश्वास भी कैसे करलें ब्रेक्सिट और ट्रम्प की बात कोई पुरानी तो हुई नहीँ थी , सायद तभी वो भी ज्यादा sure होके कुछ नहीं बोल रहें थे ।  सभी को बस जानना था की सरकार कोन बना रहा है ? आधा सवा घन्टा टीवी देखने के बाद गुस्से से न जाने जाने कितनों ने टीवी बन्द क्र दिया होगा । 

अगले दिन रिजल्ट आ गया और कइयो के तो चुनावी गुब्बारे फुट गए मनो ओपपोजिशन में मातम छा गया , देखते ही देखते b.j.p की गाड़ी ३०० के भी आगे चली गयी सरे रिकॉर्ड टूट गए , भाई टूटे भी क्यों नहीं ऐसा मैंडेट आखरी बार राजीव गाँधी के समय में आया था । 

                    मोदी का मैजिक चल निकला होली मनी इसबार भगवा वाली । सरे देश ही नहीँ देश विदेश की भी नजरें इस पर लगी हुईं थी , हो भी क्यों नहीं आखिर यहाँ पर मोदी मैजिक ,डेमोनेटाइजेशन और अगले लोक सभा इलेक्शन से जोर क्र देखा जा रहा था ।  इस चुनाव को जीत कर न सिर्फ मोदी को कड़े फैसले लेने में बल मिलेगा  । 

कड़े फैसले लिए गए तो थोरे समय तक महगाई फिर से मुह उठाएगी पर कुछ साल बाद विकास में बल मिलेगा और देश ग्लोबल लेवल पर और मजबूत होगा । पाकिस्तान और चाइना से हम और अछे से निपट पाएंगे और आम आदमी तक सरकार की योजनाएं पहुच पाएंगी । 

सुनते ही जित दौर चले आए हम पर समय लगेगा और बदलाव की राजनीती सुरु हो सकेगी ।

Monday 28 November 2016

हर हर मोदी,घर घर मोदी:: Hindi blog post

चुनाव जितने के बाद मोदीजी की छवी तेजी से बनी है, इसमें कोई दोराय नहीं है। कल तक जो मोदी के विरोधी थे वे भी मोदी मोदी के धुन में नाचने लगें है,और सेटमैक्स दीवाना बना दे की तर्ज पे मोदी जी भी लोंगों को दिवाना बना रहें है । उनके खुले समर्थन में मिडिया, कॉर्पोरेट, और लॉबी आ रहीं है और तथाकथित प्रचार उद्योग को बल मिला है, चाहे जमिनी हकीकत कुछ भी हो आपको अच्छा अच्छा ही दिखाया जाता है जिससे  आप हमेसा धोखे में ही रहतें है ।  काम का प्रचार तो होना ही चाहिए, पर अति प्रचार, दुष्प्रचार या किसी कि इमेज बनाने को की जा रही प्रचार से बचना चाहिए । 

                                                     आज राजनीतिक धुर्वीकरण बढी है, और पहले से अलग तरह की राष्ट्रवाद ने अपने पैर जमाने शुरू कर दिए है । व्हाट्सएप्प, फेसबुक, ट्विटर जैसे मंचों पर आपको भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है और आप ने भी अपने अपने विवेक से अपना गुट चुन लिया है । आज कोई भी चिजों की जाँच नहीं करता और मीडिया जो दिखता है बही सच मान लिया जाता है, सायद यही राजनेतिक अंधापन है जिसके हम सब नए शिकार है । 
                                            आज मोदी जी राजनेतिक बहस या भाषणों से उठकर सीधे आपके घरों तक आ गए है , उनकी आहत मैंने भी महसूस की है,  सायद आपका तो सामना भी हो गया हो। आज चीजें मोदी जी के ही इर्द गिर्द घूमने लगी है और हर बात मोदी के साथ होने या न होने पर खत्म हो जाती है । उन्होंने नए पुराने सभी मीडियम को साधने में मनो दचछता हासिल कर लि है, तभी तो रेडियो हो या टीवी, चाहे प्रिंट मीडिया वे मनो आपसे सीधे संवाद करहें है । 
                                       सरकार में आने के बाद ही मोदी  जी ने ताबरतोड़ फैसले लिए, खूब प्रशंसा भी हुई और विश्व में उनकी छवि और बेहतर हुई । ऐसा ही उनका मेक इन इंडिया का फैसला खूब चर्चा में रहा और इसकी खूब प्रसंसा भी हुई, कहने को तो बड़ी बड़ी बातें हुईं टीवी पर तो घण्टों लोग चिलाते रहें पर आज तक इसका क्या प्रभाव परा ?  कितनी नए कल-कारखाने खुले या नए उद्योगों को बढने में क्या सहयोग दिया जा रहा है ? क्या आपने कभी ये जानने की कोशिश की कि क्यों बाहर के कम्पनी तो अपना सामान बेच कर चली जातीं है पर अपने किसी को उठने का मौका नहीं मिलता, ये तो वैसा ही है कि एक गरीब को कोई ५० (50 ) रुपए भी नहीं दे रहा था पर उस भूखे गरीब की फोटो कहीं ५०(50 ) लाख में बिक जाती है । 
                                        आप मोदी या किसी भी राजनेतिक पार्टी के मुरीद हो सकतें है पर अपनी लगाम किसी और के हाथ दे देना तो कोई अछि बात नहीं है, क्या आप समझतें है की आप जनता है किसी पार्टी के कार्यकर्ता नहीं, आप किसी भी पार्टी के बात को सुन कर उसे मानने या न मानने का चुनाव क्र सकतें है। ये ही आपकी शक्ति है जिसे आप सायद खो रहें है, आशा है आप राजनेतिक अंधेपन का शिकार न होकर अपना मान बरहाएंगे ।
                                         
                                                

Saturday 26 November 2016

ये भी एक मेला है :: Hindi blog

यूँ तो मेले लगते उजड़ते रहतें है, इनमें सायद आपभी कभी गए होंगे! जिसकी  भीड़ और उत्साह की मिली जुली याद आपको सायद याद हो। मेला पहले भी लगता था मेला आज भी लगता है, ठंड का समय आ गया है और एक और मेला चल रहा है, भीड़ लगी हुई है ,उत्साह तकलीफ और हंगामें की भी कोई कमी नहीं है ।  जी ये नोट बदल मेला है, जिसे  प्रधान मंत्री जी ने नोट बन्दी का एलान कर शरू किया है। 
                                                 मुझे नहीं पता की ये फैसला सही है या गलत पर हर तरफ फैले अफरातफरी से कोई इंकार नहीं क्र सकता । परेशान तो सब है पर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं, बुरा तो तब लगता है जब बुजुर्गों को भी इस लाइनों में घंटों खड़ा रहना पड़ता है । माहौल गर्म है और इसे व्हाट्सएप्प और twitter पर और भड़काया जा रहा है, मीडिया घंटो एक ही चीज दिखा दिखा कर भी थक नहीं रहा और सायद आप भी बोर नहीं हो रहें है ।  जनता अब फैन बन रही है कोई मोदी फैन है तो कोई झाड़ू वाला सबने सुनना बन्द क्र दिया है , अपने नायक की बुराई हजम नहीं होती है और खुले विचार जैसे शब्द तो बस अब कहने के लिए ही रह गयें है । कल मैं एक बैंक की लाइन मैं औरों की तरह लगा हुआ था कोई वहाँ सायद दो दिन से आकर परेसान हो गया था और आखिर बोल बैठा " मोदीजी तो सबको फेरा में फसा दिए है और खुद मजे में घूम रहें हैं " उसका इतना कहना क्या था उसे तो मनो टारगेट पे ही ले लिया गया । ठीक हैं आप मोदी जी के फैसले से सहमत असहमत हों सकतें है पर दुशरों पे तो हमें अपना मत थोपना नहीं चहिये, हाँ समझाया जा सकता है । 
                                                पर सबकुछ बुरा भी नहीं है लोग यहीं बहाने कुछ समझ तो रहें हैं की सारा पैसा घर पे रखना ठीक नहीं है । सबसे अछी बात तो ये है , लोग paytm जैसी सेवा का उपयोग करना सिख रहें है, और paytm और मोबाइल बैंकिंग की मनो निकल पड़ी है और चाहे अनचाहे तहर से ही वे भी डिजिटल हों रहें है जो सायद डिजिटल होना नहीं चाहते या सायद डर लगता है, बात जो भी हो डिजिटल इंडिया को इससे बल मिला है और ये एक सकारात्मक पहल है । 
                                                 मेले का आप भी आनन्द उठाइये क्या पता आपको ये ६०(60 ) दिन किस तरह याद रह जाये। राजनेतिक पार्टयों के अलग अलग दलीलें हैं सुनते रहिये सब का पर करिये अपने मन का, ये भी अब एक तरह का एंटरटेनमेंट शो हो गया है जहाँ एक स्क्रीन पर कई चहरे एक दूसरे से लड़ते देखा जा सकता है, trp मिल रही है और सब देख रहें है । आशा है आप अपने विवेक का इस्तेमाल क्र हीं रहें होंगे और क्या पता सायद कला धन निकल ही आये ।

Friday 25 November 2016

क्या आप इंसान हैं ?

ऐसे तो हम खुद को बुद्धि जीव कहते नहीं थकते, अपनी उपलब्धियों को गिनाने से भी कोई गुरेज नहीं है । मानव या इंसान के कहने के लिए तो कई प्र्कार है पर सायद हम इंसान नहीं जीव बनते जा रहें हैं । क्या आपको ऐसा नहीं लगता,  आपने कितने ही दफा राह चलते दुर्घटना होते तो देखा ही होगा कितने लोग रुकतें है? और अगर रुक भी गए तो महज तमसा देख चलें जातें है. सायद ये कुछ ज्यादा ही बड़ी बात हो गयी सो फिर से छोटे से सुरु करतें हैं, क्या हमें पता है की परोस में कौंन रहता है? अगर पता हो भी तो बस एक दो दफा ही मिला होगा। वाकई आज जमाना तेज भाग रहा हैं और हम भी अब दौड़ना सिख गयें हैं , हम सुदूर अपने परिजन या गर्लफ्रेंड से तो बात क्र सकतें है पर सायद अब शब्द कम पर जा रहें हैं, emoji के बिना तो काम मुश्किल लगता है। भीड़ दौड़ रही है , और हम और आप कोई इससे अछूते नहीं हैं । 
                                                       आज आप कुते या बिल्ली तो पाल ले रहें हों पर सायद एक आम व्यव्हार सायद कहीं भूल जा रहें है, हमें सिर्फ अपनी पड़ी  है जमकर नोट भर लो अपना काम करो और भाग निकलो, कोन सायद बगल से गुजर जाये पता भी नहीं चलता ।  बात एकदम सच है की हम दिन प्र्तीदीन और अकेले होते जा रहें हैं तभी तो माइग्रेन, टेंशन जैसी चींजें आम हो चलीं हैं क्या आप कूद को अकेला महसूश नहीं करने लगें है या टीवी पर चैनल्स बदल बदल क्र काम चल जा रहा है । बस अब हमें जीने से मतलब है , अगर जिना ही इंसान होना है तो फिर जीव भी तो जी रहें है, सायद उनमें भी जिन्दा रहने की दौड़ हमसे कहीं ज्यादा है । अगर सब एसा ही है तो हमारा इंसान कहलाना क्या फिर अपनी कमजोरी को छुपाने की एक कोशिश माञ  है । 
                                                      क्या आप सकारात्मक सवाल करतें है, उत्तर देंनें में रूचि रखतें हैं? सायद विचार विमर्श करना पुराणी या समय काटने की बात हो गयी हैं । क्या आपको नहीं लगता आप इंसान नहीं भीड़  बस एक हिस्सा बनकर रह गए हो जिसे कुछ दिखता नहीं बस आक्रोश से भरा हुआ है, तभी लोग अव जल्दी अपना आपा खोने लगें हैं और बगझग़ तो दिनचर्या का हिस्सा सा हो गया है । हम अखवार पढ़ना कम कर दिये हैं, व्हाट्सएप्प या फेसबुक से काम चल रहा है, और जो दिखाई या बताई जाती है उसे पढ सायद अपना बीपी बढ़ाते रहतें हैं ।
                                मैं अभी भी आशान्वित हूँ की आप कुछ समझियेगा और इसी तरह तो हम सीखतें है , बाकी भूल चूक तो माफ़ है आखिर हम इंसान है ।

Wednesday 23 November 2016

क्या हमें शर्म आती है ?

संकोच और शर्म के पर्याय समय के साथ तेजी से बदल रहें हैं, जहां संकोच होना चाहिए वहां हम और अधिक उदार और खुले विचारों के होते जा रहें हैं, पर जहां हमें गर्व होना चाहिए वहां हम डर और संकोच से घिर गये हैं । 
यही तो नई वैश्वीकरण की हकीकत हैं, की हम आज जिध्र भी जाएं अंगरेजी का ही बोल वाला है ,मैं बिलकुल भी अंग्रेजी के खिलाफ नहीं हूँ , हमें हमसबको यह आना ही चाहिए आखिर आज समय की यही मांग है और ये तो सब जानतें हैं की जो समय के साथ नहीं चलता वो मिट जाता है । तो मैं किसके खिलाफ हूँ ?
                                           मेरी लड़ाई उस सैली या कहे तो उस नई प्रचलन से हे जहाँ अंग्रेजी बोलने वाले को स्मार्ट , तेज ,योग्य , पढ़ा लिखा और सलीन मानते हैं और हिंदी या अन्य छेञिये भाषा बोलने वालों को कमजोर , मुर्ख , अयोग्य , अनपढ़ और असभ्य समझतें हैं । क्या आप मुझे बता सकतें हैं की कैसे अंग्रजी का fuck जब तक fuck है आपको कोई इसे कहने या उपयोग करने पर न तो आपको कुछ बोलेगा और न ही आपको असभ्य समझेगा , बल्कि इसके उलट आप तो और कूल कहलायेंगे । आपने इनका प्रयोग खुद ही देखा होगा यहां तक की लड़किंया भी इसका बरा इस्तेमाल करतीं हैं , पर जैसे ही ये अंग्रजी का fuck हिंदी का चोद होता है चीजें कितनी तेजी से बदल जाती है ये आप सोच और देख ही सकतें हैं। हो सकता है आपकी राय कुछ मेरे से भिन हों पर यही इस कॉर्पोरेट युग की सचाइ हो गयी है । आप कहीं अछे जगह जाएँ चाहे वो सिनेमा मल्टीप्लेक्स हो या पांच सितारा होटल अगर आपको अटेंडेंट से हिंदी में बात करने में हिचकिचाहट हो तो समझ जाईये की आप और समाज किस दोराहे पर खड़ा है । 
                                          हम तरक्की कर रहें है, सायद यही आजकल का न्या विकास का मॉडल है हम सब चल परें है, तभी तो आज लोग हिंदी देख कर चकराने भी लगें है । अरे भाई चौकिये मत एकदम सही बात है , अच्छा आप एटीएम तो जरूर इस्तेमाल करतें होंगे तो आप ही सोचिये आपने कितनी ही दफा अंग्रजी की जगह हिंदी को चुना सायद ही २-३ बार वो भी मुश्किल से ही और लो हम्हें तो चाहिए की हमारा लड़का या लड़की तो एकदम संस्कारी और खानदानी हो । क्या आपको शर्म आती है ? सायद अब हम इन सवालों से भी ऊपर उठ गये हैं , ठीक है करते रहिये जो आपको ठीक लगे साला अपना क्या जाता है भाई. 
                                          सायद भाषा ही केवल वो चीज नहीं है जहाँ हम रिवर्स गियर पर चलें गयें हैं हम इस उदारीकरण के दौर मैं खुद को एक जंतु या उपभोग की वस्तु बना बेठे हैं । ऊपर बैठें लोंगों को हमें नचाना या बोले तो कंट्रोल करना आ गया है, क्या आप वो नहीं पहनते जैसा दिखाया जाता है , आप वो मानतें व समझतें हैं जो बताया और दिखाया जाता है ।  क्या आप भिखारी नहीँ बन बैठें हैं ? अगर आपको विस्वास नहीं तो फिर जिओ हो या free लैपटॉप या और ही चुनावी वादों मैं ये free शब्द इतना क्यों आ रहा हैं । आप सायद ये सब पढ़ कर मुझे पागल भी क्र सकतें हैं मेरी ताकत ये ब्लॉग नहीं है मेरी स्वतन्ञ सोच हैं, भगवान करें आप भी थोड़ा खुलके सोचने लगें , सायद अभी भी कुछ हो सकता है मुझे आपके जागने की उमीद है. । 

- अमित अभिषेक